Saturday 23 April 2016

कॅगन मे बॅधी,झुमको मे सजी,पायल की छन छन मे बिखरती...यह मासूम सी मुहबबत

 है मेरी...तेरे इशक की खामोशी मे कुरबान होती..दिल मे दबी तूफाॅ की चिॅगारी है यह

मेरी...चिराग जलतेे है या बुझते है..दिन और रात कब कहा रूकते है..खबर नही मुझ को

 इस की..तेरी मुहबबत मे हू घायल,इसी तडप से सजी जिॅदगी है मेरी...

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...