अपने रॅजो-गम मे रहते है नवाबो की तरह..नजऱ ना लगे,लगाते है टीका माॅ की दुआओ
की तरह...शाही जिॅदगी के रसूख से है दूर,,बहुत ही दूर...इबादत की राहो मे रहते है बस
मशगूल..किस ने की वफा,किस ने दामन छोड दिया..खुदा के दरबार मे लगा कर अरजी
हो गए है फिर मसरूफ..वो रहम करे सब पे,अब सोचते भी नही कुछ और....
की तरह...शाही जिॅदगी के रसूख से है दूर,,बहुत ही दूर...इबादत की राहो मे रहते है बस
मशगूल..किस ने की वफा,किस ने दामन छोड दिया..खुदा के दरबार मे लगा कर अरजी
हो गए है फिर मसरूफ..वो रहम करे सब पे,अब सोचते भी नही कुछ और....