बदनाम गलियों से निकल कर,आरज़ू की राह देखी....सितम पे सितम झेले,मगर हसरतो की चाह
कभी ना भूले...पायल आवाज़ करती रही,बाशिंदे साज़ बजाते रहे....बहुत नाचे बदनाम गलियों मे
मेहमान नवाज़ी की रस्मो मे ढले,पंखो को उड़ान देना फिर भी ना भूले....किसी की लफ्ज़-अदाएगी
को अपना समझने की भूल ना कर बैठे,दिल को ख़बरदार करना कभी भी ना भूले...यह वो रंग है
इस दुनिया का,नकाबपोशों को सिरे से नकारना किसी पल भी नहीं चूके......
कभी ना भूले...पायल आवाज़ करती रही,बाशिंदे साज़ बजाते रहे....बहुत नाचे बदनाम गलियों मे
मेहमान नवाज़ी की रस्मो मे ढले,पंखो को उड़ान देना फिर भी ना भूले....किसी की लफ्ज़-अदाएगी
को अपना समझने की भूल ना कर बैठे,दिल को ख़बरदार करना कभी भी ना भूले...यह वो रंग है
इस दुनिया का,नकाबपोशों को सिरे से नकारना किसी पल भी नहीं चूके......