तुझ पे दुआऐ बरसाने के लिए,जरुरी तो नहीं कि तेरे साथ जिया जाए...मेरी रूह तुझे हर वक़्त महफूज़
रखे,जरुरी नहीं कि मेरा जिस्म तेरे दायरे मे रहे....इबादत के ताने-बाने मे,कितना खुद को गलाया
कितने जज्बात बहे....खुद की सफाई मे सिर्फ नाम खुदा का पुकारा और सारे सुबह शाम बस उसी के
नाम किए....अपने लिए क्या मांगे,बस रूह से जुड़े हर शख्स को दुआओ मे नहला कर...आँखों के यह
मोती इन्ही पे कुर्बान किए.....
रखे,जरुरी नहीं कि मेरा जिस्म तेरे दायरे मे रहे....इबादत के ताने-बाने मे,कितना खुद को गलाया
कितने जज्बात बहे....खुद की सफाई मे सिर्फ नाम खुदा का पुकारा और सारे सुबह शाम बस उसी के
नाम किए....अपने लिए क्या मांगे,बस रूह से जुड़े हर शख्स को दुआओ मे नहला कर...आँखों के यह
मोती इन्ही पे कुर्बान किए.....