Sunday 4 February 2018

एक आशा  एक निराशा .....कही ख़ुशी का झुरमुट कही दुखो का सन्नाटा .....कही रेत से तपती धरा

तो कही सैलाब मे डूबी यही धरा....मचल गया एक नादान महज सोने के सिक्को के लिए......और

कही दूर खड़ा एक नादान भूख से बेहाल तरस गया सूखी रोटी के लिए....बेवजह बरसी बारिश सब

तहस नहस करने के लिए और बिना बूंदो के चल बसा एक सुखी संसार.....किस्मत का खेल है या

कर्मो का दिया.....जो भी हुआ उस की मर्ज़ी से हुआ....

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...