Thursday 22 February 2018

हर गुजरता लम्हा हमी से हमारी उम्र को चुरा रहा है.....ओस की बूंदो की तरह यह वक़्त भी हमारे

हाथो से फिसल रहा है....खुद की धडकनों को जो सुने,तो यह आज भी बेबाक धड़क रही है...किसी

भी खौफ से दूर,हर इम्तिहान के लिए तैयार हो रही है....उम्र और वक़्त से परे,यह अपने मेहबूब पे

निसार हो रही है....जा रे वक़्त तू क्या हम से चुराए गा,मेहबूब की बाहों का यह प्यार तेरी ही धज़्ज़िया

उड़ा जाए गा.....

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...