हर मोड़ पे हम भूल पे भूल करते चले गए...तुझी को पाने की कोशिश मे,कभी रोए कभी बेबस होते
चले गए....मेहंदी रची तेरी उन हथेलियों को आज भी याद करते है,तेरे माथे की उस बिंदिया पे जब
किसी और का नाम जान लेते है...यकीं नहीं होता कि राहे अब ज़ुदा है हमारी...अकेले चलने की
हालत मे बस तबाह होते चले गए....दीवाने बने तो इतना बने कि भूल पे भूल करते चले गए ...
चले गए....मेहंदी रची तेरी उन हथेलियों को आज भी याद करते है,तेरे माथे की उस बिंदिया पे जब
किसी और का नाम जान लेते है...यकीं नहीं होता कि राहे अब ज़ुदा है हमारी...अकेले चलने की
हालत मे बस तबाह होते चले गए....दीवाने बने तो इतना बने कि भूल पे भूल करते चले गए ...