Tuesday 24 February 2015

खुल रहे है मन के बॅधन धीरे धीरे--यकीॅ कर रहे है तुम पे धीरे धीरे-----इस दुनियाॅ मे

कोई अपना ही ना मिला--सो दूर हो गए सब से धीरे धीरे-----तेरी शराफत के हम कायल

हुए--तेरी मुहबबत पे हम फिदा हुए---पर अब तुमहे जान गए है धीरेे धीरे----जिनदगी

भर के लिए खुदा से माॅॅग ले गे तुमहे--वो भी धीरे ----धीरे------------

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...