Sunday, 22 February 2015

धीरे धीरे--ऱफता ऱफता--जिनदगी मे सब कुछ खोते चले गए---कभी अपनो के तो कभी

बेगानो के इलजामो से खुद को घिरा पाते रहे--बेबसी मे बस--तुमहे को याद करते चले

गए--यह दुनियाॅ तेरे बिना मेरे किसी काम की नही--इनतजाऱ है तेरी उस आहट का----

कि कब कहो गे मुझे जरूरत है तुमहारी--मेरी दुनियाॅ मे बस चले आओ------------------

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...