Sunday 20 August 2017

तेरी हां सुनने के लिए बहुत दूर से आए है....दुनिया तेरी मासूम सूरत पे फ़िदा है,पर हम तो तेरी मासूम

रूह से गुफ्तगू करने आए है....रेत का घर बनाया था कभी,तुझ से मिलने से पहले इसी घर को हज़ारो बार

गिराया था कभी....क्या पता था किसी खूबसूरत मोड़ पे तुम से मुलाकात हो जाए गी....भरभरा कर फिर

से इस घर को गिराया है मैंने,तेरे पाँव सोने की चौखट पे पड़े...इसलिए आज तुझ को बुलाया है मैंने....

तेरी हां मे शामिल है जीने की वजह,हकीकत में .... इस घर मे तुझे लेने बहुत दूर से आए है......

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...