Sunday 6 August 2017

तारीख मुकर्रर नहीं करते कि खुद से खफा हो जाए गे---दिन तो गुजर जाए गा,पर रातो को जागना भारी

हो जाए गा---तेरी  बेबाक अदा..उफ़ यह  बोलती सी नज़र जुदा..कहते है ए सागर थाम ज़रा अपने सैलाब

की जगह----यह आंखे जो कहर ढाह जाए गी,तेरी गहराई को भी मात दे जाए गी---मांग ना मुझे,मुझ से

इतना कि तारीख मुकर्रर करने के लिए,खुद को तेरी हमनशीं करार कर जाए गे---

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...