Thursday, 10 August 2017

दुनिया तेरे मेरे घर को मकान कहती है..ईंट पत्थर से बनी एक दुकान समझती है ..... जहा बस रही

ख्वाइशे मेरी,जहा चल रही यह साँसे भी मेरी...हर कोने मे माँ की परछाईया दिखती है...तेरे वज़ूद मे

मेरे वज़ूद का गुमा होता है....टूट के चाहा है तुझे,उस का असर हर जगह मिलता है...कोई माने या ना

माने,तेरी परछाई हु .....सदियों मे पैदा हुई,वही तेरी ही दुल्हन हु...

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...