Saturday 29 July 2017

जान कर हमे क्या करो गे----दिल ही टूटे गा और हमे मजबूर सोचो गे----ज़िन्दगी कहाँ रूकती है सज़ाए

देने से,हर मोड़ पे दबोच ही लेती है----रेत के महल बनते है और अक्सर टूट जाया करते है,नम आँखों से

बिखरते देखा करते है----मुस्कुराहट आज भी दुनिया का दिल जीत लेती है,आँखों की शोख़िया दिल पे

बिजलियाँ आज भी गिरा जाती है---वल्लाह,यह ज़िन्दगी आदत से अपनी ना बाज़ आती है,और हम है

कि इस के नाज़ उठाते नहीं बस शिद्दत से मात देते रहते है-----

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...