कहानी ज़िन्दगी की लिखते लिखते हज़ारो पन्ने भर दिए----हिसाब माँगा जब इसी ज़िन्दगी ने हम से
खामोश क्यों यह लफ्ज़ हो गए---टूटन भरी जब इस जिस्म मे,अश्क भी जिस्म से हिसाब मांगने लगे
लम्हा लम्हा कतरे बहे और वज़ूद से टकरा गए---कल हम रहे या ना रहे,निशाँ कुछ ऐसे छोड़ जाये गे
खुले गी परते अतीत की और हम हवाओ मे कही दूर गुम हो जाये गे ---
खामोश क्यों यह लफ्ज़ हो गए---टूटन भरी जब इस जिस्म मे,अश्क भी जिस्म से हिसाब मांगने लगे
लम्हा लम्हा कतरे बहे और वज़ूद से टकरा गए---कल हम रहे या ना रहे,निशाँ कुछ ऐसे छोड़ जाये गे
खुले गी परते अतीत की और हम हवाओ मे कही दूर गुम हो जाये गे ---