Friday 14 July 2017

कहानी ज़िन्दगी की लिखते लिखते हज़ारो पन्ने भर दिए----हिसाब माँगा जब इसी ज़िन्दगी ने हम से

खामोश क्यों यह लफ्ज़ हो गए---टूटन भरी जब इस जिस्म मे,अश्क भी जिस्म से हिसाब मांगने लगे

लम्हा लम्हा कतरे बहे और वज़ूद से टकरा गए---कल हम रहे या ना रहे,निशाँ कुछ ऐसे छोड़ जाये गे

खुले गी परते अतीत की और हम हवाओ मे कही दूर गुम हो जाये गे ---

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...