Wednesday 26 July 2017

ना लगाओ काजल कि यह रात गहरा जाए गी ---ना बिखराओ  गेसू कि रात शर्म से मर ही जाए गी ----

दुप्पट्टा लहराओ ना हवा मे इतना कि हवाएं रुख बदलना भूल जाए गी---ना मुस्कुराओ अब इतना यह

परियां कही की ना रह जाए गी---इतनी नज़ाकत से जो धर रही हो पाँव ज़मी पे इतना,होगा आसमां को

झुकना और यह ज़मी----यह ज़मी तो आप के कदमो मे कुर्बान हो जाए गी----

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...