बहुत चाहा ज़ख्मो को ज़ख़्म ही रहने दे,नासूर ना बनने पाए---अश्को को आखो मे ही पी जाए,बाहर
फिसलने ना दे---चाही बस थोड़ी सी ख़ुशी,थोड़ी सी हसी और जीने के लिए ज़िन्दगी रहे इबादत से
भरी---पर हम करते रहे इबादत,कि कही दिल का गुबार जहाँ मे तबाही ना ला दे---तोड़ने वालो को
अब खुदा हाफिज,कि अब मकसद बदल चूका जीने के लिए--टुटा है यह गुबार और अश्क......यह तो
अब निकल चुके राहे-तबाही की तरफ----
फिसलने ना दे---चाही बस थोड़ी सी ख़ुशी,थोड़ी सी हसी और जीने के लिए ज़िन्दगी रहे इबादत से
भरी---पर हम करते रहे इबादत,कि कही दिल का गुबार जहाँ मे तबाही ना ला दे---तोड़ने वालो को
अब खुदा हाफिज,कि अब मकसद बदल चूका जीने के लिए--टुटा है यह गुबार और अश्क......यह तो
अब निकल चुके राहे-तबाही की तरफ----