चल आ...दूर बहुत दूर कही चलते है इस दुनिया से --बेबसी का जहा ना आलम हो ना दर्द की तन्हाई
हो --जहा सुबह तेरी मर्ज़ी से हो और मेरी शाम ढले तेरी बाहों मे--ना पहरा हो ज़माने का,ना रंजिश हो
बेगानो की --तेरी बाहों मे सो जाऊ,उम्र भर के लिए खो जाऊ--किस्मत की लकीरो मे तू हो या ना हो,पर
तुझे हासिल मैं कर जाऊ--प्यार के इस जहाँ मे आ चलते है,दूर बहुत ही दूर---
हो --जहा सुबह तेरी मर्ज़ी से हो और मेरी शाम ढले तेरी बाहों मे--ना पहरा हो ज़माने का,ना रंजिश हो
बेगानो की --तेरी बाहों मे सो जाऊ,उम्र भर के लिए खो जाऊ--किस्मत की लकीरो मे तू हो या ना हो,पर
तुझे हासिल मैं कर जाऊ--प्यार के इस जहाँ मे आ चलते है,दूर बहुत ही दूर---