Friday 27 January 2017

ताउम्र रात ही लिखी होती जो तक़दीर मे...तो सुबह का इंतज़ार कोई क्यों करता---दुखो का रेला जो

साए की तरह साथ चलता..तो खुशियो का इंतज़ार भला कोई क्यों करता---बेवफाई ही बेवफाई गर

प्यार मे मिलती रहती..सच्चे प्यार का तलबगार इस ज़माने मे कहा मिलता---यू ही नहीं कहते कि

सूरज डूब गया..सूरज न होता तो यह सारा जहाँ रोशन कभी न होता----

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...