ताउम्र रात ही लिखी होती जो तक़दीर मे...तो सुबह का इंतज़ार कोई क्यों करता---दुखो का रेला जो
साए की तरह साथ चलता..तो खुशियो का इंतज़ार भला कोई क्यों करता---बेवफाई ही बेवफाई गर
प्यार मे मिलती रहती..सच्चे प्यार का तलबगार इस ज़माने मे कहा मिलता---यू ही नहीं कहते कि
सूरज डूब गया..सूरज न होता तो यह सारा जहाँ रोशन कभी न होता----
साए की तरह साथ चलता..तो खुशियो का इंतज़ार भला कोई क्यों करता---बेवफाई ही बेवफाई गर
प्यार मे मिलती रहती..सच्चे प्यार का तलबगार इस ज़माने मे कहा मिलता---यू ही नहीं कहते कि
सूरज डूब गया..सूरज न होता तो यह सारा जहाँ रोशन कभी न होता----