Thursday 19 January 2017

ना जा दूर इतना मुझ से, कि लौट के आना मुनासिब ना हो---इश्क़ क़ी मजबूरिया इतनी ना बड़ा,क़ि

हुस्न की आग मे फिर से जलने का सबब ही ना हो---रेत पे पाव धरते धरते झुलस  जाए गे तेरे अपने

ही कदम---हाथो की लकीरो को मिटाने के लिए,गर्म लावे मे इन को ना जला---नमी तो आज भी है इन

आँखों मे मेरी,अपनी आँखों को इतना ना घूमा कि मेरे पास लौट के आना मुनासिब ही ना हो----

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...