विशवास की डोरी मे बॅॅॅधा,सीने मे लहूू बन कर बहा...कभी रोकेे सेे ना रूका,आॅॅॅखो मे इक
जजबाती सा सवाल बना....तेरे मेरे रिशते की कामयाबी का धुुआधार नशा...लोग उठाए
गेे आवाज किसी अधूरी सी कहानी की तरह...कभी बिखेरे गेेेे अलफाज फकीरी-अॅॅदाज
की तरह...फिर भी रहे गा यह नशा राजसी ठाट की शोहरत की तरह.....
जजबाती सा सवाल बना....तेरे मेरे रिशते की कामयाबी का धुुआधार नशा...लोग उठाए
गेे आवाज किसी अधूरी सी कहानी की तरह...कभी बिखेरे गेेेे अलफाज फकीरी-अॅॅदाज
की तरह...फिर भी रहे गा यह नशा राजसी ठाट की शोहरत की तरह.....