Sunday, 31 December 2017

ना भी नहीं...हां भी नहीं---जहा तक जाती है नज़र,वहा तक तेरी बेवफाई के निशाँ कही भी नहीं----

पलट कर तेरा मुझे देखना,पर लब पे मुस्कराहट कही भी नहीं---तेज़ कदमो से मेरी तरफ लौटना

पर बिना देखे मुझे रफ़्तार से चले जाना...मुहब्बत का एहसास अभी भी नहीं----रुखसती के वक़्त

पलकों का नम होना,पर आंखे मिलाने की हिम्मत कही भी नहीं..कही भी नहीं-----

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...