Friday, 29 December 2017

यू ही कभी नज़र झुक गई,और ऐसी नज़र को वो इकरार हमारा समझ बैठे----किसी बात पे जो हस

दिए,हमारी हसी को वो प्यार हमारा समझ बैठे----किसी बात से खौफ खा कर ,जो खुद मे सिमट बैठे

शर्मों-हया की मूरत हम को मान बैठे----जब रो दिए अपनी ही बेबसी पे,मनाने के लिए अपने कदमो से

हमी पे निसार हो बैठे---  या अल्लाह....तेरी नज़र से खुद को बचाए या खुद से खुद की नज़र उतार ले

कि वो तो हमारी हर बात को अपनी मुहब्बत का हक़दार समझ बैठे----




दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...