टूटने के लिए जरुरी तो नहीं कि ज़ार ज़ार रोया जाए---खुश होने के लिए क्या जरुरी है कि पैरो को
थिरकने को मजबूर किया जाए---लब मुस्कुराते है कभी तो यह आंख क्यों भर आती है---और कभी
आंखे बरसती है सावन की तरह, तो लब क्यों मुस्कुरा देते है----अज़ब खेल है ज़िंदगानी भी,यहाँ हॅसते
है तो दर्द दिल मे छुपा जाते है---और रो रो कर बेहाल जब होते है तो रहम की भीख पा जाते है---या खुदा
मेरे,तेरी दुनिया मे ज़िंदा रहने के लिए..क्या किया जाए..क्या ना किया जाए----
थिरकने को मजबूर किया जाए---लब मुस्कुराते है कभी तो यह आंख क्यों भर आती है---और कभी
आंखे बरसती है सावन की तरह, तो लब क्यों मुस्कुरा देते है----अज़ब खेल है ज़िंदगानी भी,यहाँ हॅसते
है तो दर्द दिल मे छुपा जाते है---और रो रो कर बेहाल जब होते है तो रहम की भीख पा जाते है---या खुदा
मेरे,तेरी दुनिया मे ज़िंदा रहने के लिए..क्या किया जाए..क्या ना किया जाए----