Saturday 23 December 2017

टूटने के लिए जरुरी तो नहीं कि ज़ार ज़ार रोया जाए---खुश होने के लिए क्या जरुरी है कि पैरो को

थिरकने को मजबूर किया जाए---लब मुस्कुराते है कभी तो यह आंख क्यों भर आती है---और कभी

आंखे बरसती है सावन की तरह, तो लब क्यों मुस्कुरा देते है----अज़ब खेल है ज़िंदगानी भी,यहाँ हॅसते

है तो दर्द दिल मे छुपा जाते है---और रो रो कर बेहाल जब होते है तो रहम की भीख पा जाते है---या खुदा

मेरे,तेरी दुनिया मे ज़िंदा रहने के लिए..क्या किया जाए..क्या ना किया जाए----

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...