Tuesday 5 December 2017

हटा दे अपने गालों से इन गेसुओं को,बस यू ही लहरा दे इन्हे खुले आसमां के दायरे मे ज़रा ----पलके ना 

झुका नज़रे तो उठा,कही  दूर बजती शहनाइयों की गूंज मे मेरे लफ्ज़ो का मतलब तो बता----कब तल्क

हा..कब तल्क तेरे इंतज़ार मे तेरे आने की घड़ियां मै गिनू----क्या वक़्त से कहू कि रुक जा ज़रा,मेरे

मेहबूब मे अब तक प्यार का ज़ज़्बा ही तो नहीं जगा---लबो को अब तो खुलने दे ज़रा,ज़िंदगी के इन

लम्हो को अब तो ज़ी ले ज़रा----

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...