Friday 22 December 2017

शब्द निखरते रहे,लफ्ज़ अपनी बुलंदियों पे थिरकते रहे---कभी डूबे दर्द मे,कभी महके प्यार मे तो

कभी उन की आगोश का सपना लिए,पन्नो को मुबारकबाद करते रहे---ज़माना देता रहा तारीफ की,

हौसला-अफ़ज़ाई की निशानियां----दर्द के लफ्ज़ो मे ढूंढ़ता रहा हमारी तन्हाईया,कभी मुहब्बत के अंश

मे,खुद का नाम तलाशता रहा---पर यह शब्द,यह लफ्ज़--अपनी मुहब्बत की तलाश मे दिन-ब-दिन

निखरते रहे,बस सवरते रहे----

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...