परदे मे रहे,पर्दानशी कहने लगे यह लोग--फिजाओ मे बहकने लगे तो महजबी क्यों बोल देते है लोग...
आँखों की चिलमन को जो झुकाया,सजदे मे झुक गए जहाँ के लोग..पाँव की पायल मे बंधी,जिस्म की
हरकत मे छिपी,खुले खुले गेसुओं की बदली मे बसी..फिर से सजने की आज तबियत क्यों बनी...मेरे
दीदार के लिए बैचैन,लबो के खुलने के इंतज़ार मे बैचैन..बहुत दूर से क्यों चले आये है यह लोग...
आँखों की चिलमन को जो झुकाया,सजदे मे झुक गए जहाँ के लोग..पाँव की पायल मे बंधी,जिस्म की
हरकत मे छिपी,खुले खुले गेसुओं की बदली मे बसी..फिर से सजने की आज तबियत क्यों बनी...मेरे
दीदार के लिए बैचैन,लबो के खुलने के इंतज़ार मे बैचैन..बहुत दूर से क्यों चले आये है यह लोग...