Sunday 11 September 2016

बहुत कुछ जो था ऐसा..कह नही पाए है--छलकेे जो अशक आॅखो से..पूरी तरह बह ना

पाए है--दरद की इॅतिहा रही इतनी..सॅभल कर भी सॅभल ना पाए है--यादे जो टीस देेती

रही..किसी को ना बता पाए है--यह आॅसू,यह आहे..दरद का बहता हुआ सैलाब..यादो की

तॅॅॅहाई...कागज के पननो पे लिख कर,सब के लिए पैगामे-दरद बन कर छोड जाए गे---

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...