Monday, 19 September 2016

छोटी सी कहानी थी लेकिन..ज़ख़्म गहरे बहुत दे गई...अल्फ़ाज़ थे कम इतने लेकिन..आँखों  मे

आसुओ का गहरा सैलाब दे गई..तिनका तिनका जोड़ा था ज़ज़्बात की लिखावट का..आंधिया जो

चली गेसुओं मे रेत का गुबार भर गई..संभलते संभलते बीती कितनी सादिया..पर सदियो के हर लम्हे

पे तेरी यादे इबादत बन कर मेरी सांसो,मेरी धड़कनो मे प्यार बन कर बहुत कुछ समझा गई ...

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...