Monday, 12 September 2016

बहुत अरसे बाद उन का पैगाम आया..एक लंबी ख़ामोशी के बाद लबो के खुलने का वक़्त आया...

इंतज़ार तो बहुत देर से है..उलझनों को सुलझाने का ख्याल कब से है..मुहब्बत का इज़हार करे कैसे

वह लौट के आये तो बात बने कैसे...कशमकश मे बंधे सोच नहीं पाते..दिल नादाँ को अब समझाए कैसे..

काश अब यह वक़्त गुजरे..लब उन के खुले..रिश्तो को डोर मे बाधने का वक़्त आया ...

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...