Sunday 29 March 2015

लुटा दी पयार की दौलत हर उस शखस पर-जो जुडा रहा किसमत से मेरी--ऱाहे-मुसववऱ

मे तनहाॅॅ जो कभी हुए-ना बताा पाए खुद की उलझनो का सिला--जो बताया कभी रॅजो-

गम अपना-खुद अपनी कशती ही डुबो बैठे--अशको से भिगोया जो दामन अपना-उनही

अशको से फिर बचाया दामन अपना-पाके-मुहबबत ना हासिल कर पाए कभी----बस

लुटाते रह गए पयार की दौलत हर शखस पर-जो जुडा रहा जिनदगी से मेरी---

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...