Monday 4 September 2017

ना कहा कभी,ना माँगा कभी---सफर यू ही चलता रहा----हसरतो के नाम पे,कभी ना खुश हुए ना दर्द

को पनाह दी कभी---खामोशिया तो कभी सरगोशियां,कभी चुपके से दिल को छू गई कही किसी के

अल्फाज़ो की गहराईयां----दुआओ से भर गया आंचल इतना,कि कहे क्या उस खुदा से कि अब हमे

क्या चाहिए---सज़दे मे झुकना था,बस झुक गए---अब दिन कहाँ और रात कहाँ,इतनी दुआओ का साथ

है फिर क्यों ना कहे शुक्रिया...शुक्रिया और सिर्फ शुक्रिया---

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...