Sunday 17 September 2017

कभी हसरते,कभी जलजले,कभी सैलाब बनते है आंसुओ से यहाँ----कही कोई उदास है ज़िन्दगी से यहाँ

तो कही रेत के महल ढह रहे है यहाँ---मुश्किलों के दौर मे रो रो कर बेहाल हो रहा है कोई----तो कही

बेवफा ज़िन्दगी का जश्न मना रहा है कोई----मायने समझ लेते जो जीने के,तो यू तन्हा न रहते---

इम्तिहाँ बहुत बहुत लेती है यह ज़िन्दगी,फिर क्यों न कहे कि ज़िन्दगी तुझ से शिकवा तो कोई भी

नहीं----जीने का अंदाज़ जो सीखा होता तो कोई सदमे मे ना रहता,न ही सैलाब बनते आंसुओ से यहाँ 

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...