Friday, 22 September 2017

मुहब्बत तो मुहब्बत है...बदरा बरस जाए कितना या फिर बिजली खौफ बरसाए कितना----बहुत

भिगोया है इस बरखा ने हद की हद से परे...पर यह आंखे नहीं भीगी बरसते पानी के तले---कायम है

इन मे तेरे प्यार की वही हलकी सी खलिश,बस रही है साँसों मे अभी भी तेरी वफ़ा की वोही नमी---

शायद यह बरखा ले आए कभी सैलाब गहरा..ना बुझा है ना बुझे गा  कभी तेरे मेरे प्यार का दीया---

कहे गे हर बार यही कि मुहब्बत तो मुहब्बत है--------..........----------
  

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...