Friday 29 September 2017

बार बार ना पूछ कि मेरी रज़ा क्या है----तेरी ही इबादत मे ढली एक अनजान सही,मगर अपनी पहचान

तो है----रात ढलती है मगर तेरे नाम के साथ,दिन शुरू होता है तेरी नूरानी सूरत के तहत----मंज़िल की

तलाश मे दूर बहुत दूर चलते ही रहे,तुझे सरे-राह देखा तो रूह ने सवाल किया..बता अब तेरा इरादा क्या

है----मन्नतो की चाह मे,खुले आसमाँ की पनाह मे...अब तू फिर मुझ से ना पूछ कि मेरी रज़ा क्या है---

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...