Saturday 25 June 2016

वो पूछते है हम से अकसर..मुहबबत की इतॅिहा है कहा तक--वजूद मेरा जो ना रहा कभी

चाहत का दौर रहे गा कहा तक--जमाने के डर से किसी और के हो जाओ गे या पयार मे

मेरे तडप कर रह जाओ गे--यह जिॅदगी है अब अमानत बस तेरे नाम की..ना तडपे गे ना

किसी के हो पाए गे..रूह मे रूह को समेटे तेरी दुनिया मे चले आए गे--

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...