Monday, 20 June 2016

इकरार करो ना अपनी मुहबबत का मुझ से..कब तक हमे यू तरसाओ गे---रेतीली

वादियो मे भी,अब बरस गए है बादल..हमे जानम तुम कब तक सताओ गे---पल पल

का यह इॅतजाऱ तो मार डाले गा हमे..साॅसे जो रूकी तब आए कया जिॅदगी मेरी लौटा

पाओ गेे---हॅसी हॅसी मे मुहबबत को खेल मानने वाले..यह तो इबादते-इशक है,खुदा के

दरबार से भी माॅॅगो गे हमे..खाली हाथ लौट आओ गे--- 

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...