Tuesday, 21 June 2016

फूल बरसा दिए हम पे..यह कह कर--मेरा बनने के लिए रिवाजो की कया जरूरत है---

नरम ओस की बूॅदे हम पे बिखरा कर..खोला इक सच ऐसा कि इस हुसने-हसीॅ को गहनो

की जरूरत कया है---हाथो को चूमा और कहा..कलाईयो को सजाने के लिए अब कॅगन

की जरूरत कया है--माशा अललाह इॅतिहा पयार की जब है इतनी तो इस दुनिया की

जरूरत कया है--- 

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...