Saturday 9 January 2016

इनतजाऱ तो इनतजाऱ है,यह खतम कयू नही होता---ढलते सूरज की तरह,यह सुबह मे

फना कयू नही होता---लबो पे फरियाद लिए भटक रहे है दर-ब-दर,फिर भी तेरे लौट

 आने की घडियो पे ऐतबार कयू नही होता---झूठे वादे ना कर मुझ से कि अब तेेरे दीदार

केे लिए फिर से बहकने का मन कयू नही होता----

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...