Tuesday 6 January 2015

एक नजर जो दूर तक जाती है..पर फिर लौट कर वापिस आती है...हर राह हर मुसाफिर

से यह ताकीद करती है.......तुम ने देखा है सुरख जोडे मे सजा मेरा मेहबूब....वो महकी

फिजा,वो जननत का खवाब..धीमे कदमो मे भी पायल का शोर होता है...हिला दे जो

दामन,परिनदो के उडने का सबब होता है..रूक गए है इक मोड पर..जहाॅ हवाएॅ भी मेरे

मेहबूब के इनतजार मे फना होती है....

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...