Sunday 18 January 2015

तुम चले जिस राह पर..हम भी पीछे पीछे आ गए....कभी मुड कर जो पीछे देखा होता...

तो जान पाते,तेरे ही कदमो मेे बिछ रहे थे हम...हम तो बॅधे थे तेरी ही उस महक के

साथ,जो हमारे ही दामन को महका रही थी.....पर अफसोस है इस बात का,कि फिजाओ

मे फैली थी खुशबू हमारी...और तुम.....बेपरवाह अपने कदम बडा रहे थे वीराने मे........

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...