वो सुबह की हलकी धूप..माॅ की गोद मे सिर रख कर मीठे सपने देखना..याद है बाबू जी
की वो डाॅट..झट से भाई के पीछेे छिप जाना ..कोई गलती करना और माॅ की फटकार
खाने से पहले..मनुहाऱ कर के माॅ को मना लेना..ना कोई दुख ना तकलीफ का एहसास
था,आजाद परिनदो सा जीवन था.आकाश मे उडने की वो हसरत,वो खुली साॅसे..हर मोड
पे हौसलो का वो जजबा..आज फिर मन है जी ले उसी जीवन को..जहाॅ झरनो नदियो की
सी ऱौनक थी..
की वो डाॅट..झट से भाई के पीछेे छिप जाना ..कोई गलती करना और माॅ की फटकार
खाने से पहले..मनुहाऱ कर के माॅ को मना लेना..ना कोई दुख ना तकलीफ का एहसास
था,आजाद परिनदो सा जीवन था.आकाश मे उडने की वो हसरत,वो खुली साॅसे..हर मोड
पे हौसलो का वो जजबा..आज फिर मन है जी ले उसी जीवन को..जहाॅ झरनो नदियो की
सी ऱौनक थी..