Sunday 21 September 2014

वो सुबह की हलकी धूप..माॅ की गोद मे सिर रख कर मीठे सपने देखना..याद है बाबू जी

की वो डाॅट..झट से भाई के पीछेे छिप जाना ..कोई गलती करना और माॅ की फटकार

खाने से पहले..मनुहाऱ कर के माॅ को मना लेना..ना कोई दुख ना तकलीफ का एहसास

था,आजाद परिनदो सा जीवन था.आकाश मे उडने की वो हसरत,वो खुली साॅसे..हर मोड

पे हौसलो का वो जजबा..आज फिर मन है जी ले उसी जीवन को..जहाॅ झरनो नदियो की

सी ऱौनक थी..

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...