Tuesday 16 September 2014

कभी कभी मन यह सोच कर,बेहद उदास हो जाता है....दौलत और रूतबा गर हमारे पास

होता तो इन दुनियाॅ वालो की सोच हमारे लिए कुछ और होती....हमारी गलतीयो को

हमारा रूआब माना जाता....हमारी नाऱाजगी पे भी हमे पैगाम दिए जाते....हमारी

खिदमत की जाती....हम भी अपनी जिनदगी,अपनी शऱतो पे जीते.....पर आज बेहद

शुुकरगुजाऱ हैै अपने भगवान् के,कि अगर दौलत होती,रूतबा होता तो सब के असली

चेहरे कहाॅ देख पाते....

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...