Friday 30 June 2017

कही बदली राहे तो कही वक़्त ही बदल गया...रेत पे पाँव धरते धरते,रेत का वो निशाँ ही बदल गया...

परिंदो की आवाज़ मे सुबह का माहौल ही बदल गया...कुछ चेहरे अनजाने से,कुछ कुछ पहचाने से ....

हालत जो बदले सब बदल गया.....टुकड़े टुकड़े ज़िन्दगी के इकठ्ठा करते करते,उम्र का दौर भी बदला

और साज़िशों के अल्फ़ाज़ बदल गए...कुछ कहती है यह धडकन,सुनने के लिए अब तो यह ज़माना

भी बदल गया....

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...