Thursday 1 June 2017

तेरे जिस्म से मुझे क्यों फूलो की महक आती है--तू परी तो नहीं फिर क्यों मुझे शहज़ादी नज़र आती है

तेरी गुफ्तगू मे खुदा का नूर बरसता है--तू चलती है तो यह संसार जैसे तेरे कदमो मे सज़दा करता है--

तुझे छूने के लिए ज़मीर की सदा सुनता हू,कही भूल से तुझे ज़ख़्म न दे जाऊ इस बात को ज़ेहन मे हर

पल रखता हू----मासूम है तू इतनी कि तुझे देखता हू तो ओस की बूंदो की नमी याद आ जाती है---

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...