रूह ने रूह को पुकारा,और यह ज़िन्दगी फ़ना हो गई----ज़िस्म को छूने की कोशिश मे,दो दिल क्यों
जुदा हो गए---दर्द की इंतिहा क्यों अक्सर इबादत मे ढल जाती है---दिल को बचाने के लिए,क्यों
पलकों को भिगो जाती है----सैलाब ज्यादा न रिसे,इस से पहले यह रूह ज़िस्म से क्यों निकल जाती
है----फिर यही रूह रूह को पुकारती है,और यह ज़िन्दगी बार बार फ़ना हो जाती है-------
जुदा हो गए---दर्द की इंतिहा क्यों अक्सर इबादत मे ढल जाती है---दिल को बचाने के लिए,क्यों
पलकों को भिगो जाती है----सैलाब ज्यादा न रिसे,इस से पहले यह रूह ज़िस्म से क्यों निकल जाती
है----फिर यही रूह रूह को पुकारती है,और यह ज़िन्दगी बार बार फ़ना हो जाती है-------