Sunday 4 December 2016

रूह ने रूह को पुकारा,और यह ज़िन्दगी फ़ना हो गई----ज़िस्म को  छूने की कोशिश मे,दो दिल क्यों

जुदा हो गए---दर्द की इंतिहा क्यों अक्सर इबादत मे ढल जाती है---दिल को बचाने के लिए,क्यों

पलकों को भिगो जाती है----सैलाब ज्यादा न रिसे,इस से पहले यह रूह ज़िस्म से क्यों निकल जाती

है----फिर यही रूह रूह को पुकारती है,और यह ज़िन्दगी बार बार फ़ना हो जाती है-------

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...