Wednesday, 23 September 2015

सैलाब की गहराईयो से,खुद को बचाते आए है हम---कही था आग का दरिया,कही थे

सरद हवाओ के झोके---कभी टूटे कभी बिखरे,मगर खुद को तनहाईयो से निकालतेे

आए है हम---जजबातो की सुलगती तडपती आग मे तप कर---निखर कर,सॅवर कर

आज इस दुनिया के सामने आए है हम-----

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...