Saturday, 19 September 2015

खुमारी मे घुल गया चाहत का वो बिखरा सा नशा--पलके झुक गई,बदल गई रिशतो की

अदा--खनकती रही रात भर चूडिया,इबादत मे ढल गई मुहबबत की फिजा---रूठने-

मनाने की इस खूबसूरत जननत मे,बिखर गई चारो तरफ कहकहो की निशा

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...