Tuesday 15 September 2015

मुकददर की कहानी खुद बनाई थी कभी--हा मिटटी मे खुद ही दफन कर दी थी कभी---

हाथो की चनद लकीरो को किसमत का नाम देने के लिए--गुरबत मे सारी जवानी गला

दी थी कभी---बरसते मौसम ने भिगो दी जननत की सडक--शायद तपते पैरो से दरवाजे

की वो चौखट टूटी थी कभी-------

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...