मुकददर की कहानी खुद बनाई थी कभी--हा मिटटी मे खुद ही दफन कर दी थी कभी---
हाथो की चनद लकीरो को किसमत का नाम देने के लिए--गुरबत मे सारी जवानी गला
दी थी कभी---बरसते मौसम ने भिगो दी जननत की सडक--शायद तपते पैरो से दरवाजे
की वो चौखट टूटी थी कभी-------
हाथो की चनद लकीरो को किसमत का नाम देने के लिए--गुरबत मे सारी जवानी गला
दी थी कभी---बरसते मौसम ने भिगो दी जननत की सडक--शायद तपते पैरो से दरवाजे
की वो चौखट टूटी थी कभी-------