Thursday 10 September 2015

यही इक दासताॅ थी हमारी-जो हर बार कहते कहते रूक गए थे हम----फिर चली इशक

की ऐसी हवा,कि समभलते समभलते यू ही फिसल गए हम---ऱाज की वो बाते जो बता

गए तुम को,वही वो शाम थी रॅगी कि फैसला अपना सुना गए तुम को---यकीॅ करना-

नही करना,यह मरजी है आप की--पर कशिश अपने पयार की बता गए तुम को----

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...