Wednesday, 29 April 2015

चलते चलते इन वीरान राहो पे तेरे ही कदमो के निशाॅ ढूठ रहे है हम---कभी रहमत तो

कभी दुआओ मे तुझे ही खोज रहे है हम----कभी बेजान बनी उस पायल को धीमे से

खनका देते है हम--यह सोच कर कि उस की खनक से शायद लौट आओ गे तुम--आधी

रात को चूडियो को बजा कर तेरी नीॅद को उडाना चाहते है हम------यह जान कर कि

आवाज सुनने के लिए अब कभी भी लौट कर नही आओ गे तुम---------

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...